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बसंत पर्व पर श्रृंगार गीत हैपी वैलेंटाइन वीक

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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Tuesday, February 7, 2017: Rose Day

यह अधखिली कली पाटल की
इसको मेरा ह्रदय समझना।

सावन में बादल तो उमड़े,
आँगन कभी भिगो ना पाये।
मन-मन्थन के गीत-रतन वे,
शायद ही ओठों तक आये।
न्यास-ध्यान-मुद्रा तक सिमटी
रही साधना प्रेमालय की।
आवाहन के साम छंद का,
प्राण न उच्चारण कर पाये।
मौन-मुखर ध्वनि सी पायल की,
मेरी भाषा-विनय समझना ।
यह अधखिली कली पाटल की
इसको मेरा ह्रदय समझना।

कंठ तलक कंटकमय जिसको,
स्वयं विधी ने वसन उढ़ाये।
सहज प्रश्न है सखी तुम्हारा,
उसको कैसे गले लगायें।
पलभर इन शूलों को भूलो,
मेरी मदिर गंध में झूलो।
प्रेम राम का पूत नाम है,
जीवन शूल नमित हो जाये।
आँखो में रेखा काजल की,
मुझे निकट इस तरह समझना।
यह अधखिली कली पाटल की
इसको मेरा ह्रदय समझना।

मुझे न अभिलाषा तुलसी की,
प्रिय मैं शालिकराम नहीं हूँ।
जो अक्षत प्रत्यंचा चाहे,
वह अचूक संधान नहीं हूँ।
मैने तपोवनों में जाकर,
ढूँढ़ी है शाकुन्तल बाहें।
शत-प्रतिशत धरती का वासी,
मानव हूँ,भगवान नहीं हूँ।
रखना याद गली पागल की,
द्वार खुला हर समय समझना।
यह अधखिली कली पाटल की
इसको मेरा ह्रदय समझना।

Wednesday, February 8, 2017: Propose Day

मेरा संसार तुम्हीं से है
मुझको बस प्यार तुम्हीं से है
है और बात उन्मुक्त गात होकर
तुमसे कह सका नहीं
पर बिना कहे रह सका नहीं
………………………….
ये अहंकार की प्रतिमा सा
जो कुलिश गात पर्वत कठोर
इसमें रहनी है शेष कहाँ
जीवन स्पंदन की हिलोर
पर इसके अन्तर में जल है
जो करता कल-कल छल-छल है
है और बात झरना बनकर
ये जल अबतक बह सका नहीं
मेरा संसार तुम्हीं से है
मुझको बस प्यार तुम्हीं से है
है और बात उन्मुक्त गात होकर
तुमसे कह सका नहीं
पर बिना कहे रह सका नहीं (1)
…………………………………….
काँटों की हरी शाल ओढ़े
ये चटख शोख रंग का गुलाब
श्री सामंतों सी ठसक लिए
आँखों में सत्ता का रुआब
पर इसके भीतर भी पराग
जो सतत गा रहा सुरभि राग
है और बात आगे बढकर
पर तितली के गह सका नहीं
मेरा संसार तुम्हीं से है
मुझको बस प्यार तुम्हीं से है
है और बात उन्मुक्त गात होकर
तुमसे कह सका नहीं
पर बिना कहे रह सका नहीं (2)
………………………………………….
ये पांचजन्य घन-गर्जन स्वर
करता अरिमन में भी भरता
डगमग –डगमग धरती डोले
जब समरांगण में पग धरता
पर उर में गूँज रही वेणू
राधा-जसुदा-गोकुल-धेनू
है और बात वह द्वारिकेश
वृन्दावन में रह सका नहीं
मेरा संसार तुम्हीं से है
मुझको बस प्यार तुम्हीं से है
है और बात उन्मुक्त गात होकर
तुमसे कह सका नहीं
पर बिना कहे रह सका नहीं (3)
Thursday, February 9, 2017: Chocolate Day

लोलीपॉप लिए धूप,
ड्योढ़ी पर बैठी
हाऊ चोकलेटी
वाऊ चोकलेटी

रात फिर चकोरी ने ,
चंदा को टेरा.
किन्तु वह लगाता था ,
धरती का फेरा .
धरती की आँखों में ,
बादल के सपने .
यह जानते हुए भी ,
प्यार किया हमने .
मैं धरा का बेटा ,
वो अम्बर की बेटी .
हाऊ चोकलेटी
वाऊ चोकलेटी

बौराने आम बहे ,
खुशबू के झरने .
कमलों से भ्रमर लगे ,
छेड़छाड़ करने .
खिलखिलाती झुण्ड में ,
रौनकें बाग़ की .
तितलियों से भर गईं,
गलियाँ गुलाब की
मखमली गलीचे पर,
सरसों है लेटी .
हाऊ चोकलेटी
वाऊ चोकलेटी

माघ जब निवाय जगत ,
प्रीति में नहाए .
अँखियन की राह पिया,
हिया में समाए .
बासंती सम्मोहन ,
जलथल बंध जाय,
रचयिता रघुवंश के ,
शाकुंतल गाँय .
महुआ की छाँह तले,
मादकता बैठी .
हाऊ चोकलेटी
वाऊ चोकलेटी

Friday, February 10, 2017: Teddy Day

अद्यतन हो रहा ……………………….

Saturday, February 11, 2017: Promise Day

ये न सोचो प्रिय तुम्हें छलता रहूँगा.
दीप हूँ मैं रात भर जलता रहूँगा.

जानता हूँ मैं नहीं हूँ अंशुमाली।
बल कहाँ इतना मिटा दूँ रात काली।
प्रिय तुम्हारा नेह किंचित पा सका तो,
ले यही पाथेय मैं चलता रहूँगा।
दीप हूँ,
मैं रात भर जलता रहूँगा।

मैं नहीं हूँ हंस मानस तीर का।
ज्ञान है ना नीर एवं छीर का।
किन्तु यदि विश्वास के मुक्ता मुझे दो,
बन अमर आशा ह्रदय पलता रहूँगा।
दीप हूँ,
मैं रात भर जलता रहूँगा।

मैं न मलयज कि नवल आह्लाद दूँगा।
नरम झौंकों से मिटा अवसाद दूँगा।
साथ रहने का मुझे अधिकार देदो,
यह वचन है मैं विजन झलता रहूँगा ।
दीप हूँ,
मैं रात भर जलता रहूँगा।

ना हिमल ना श्यामघन चातुर्यमासी।
क्या मिटाऊँ तव तृषा तेरी उदासी।
किन्तु सादर ले सको लो अंजुरी में,
एक लघु हिमखण्ड सा गलता रहूँगा।
दीप हूँ,
मैं रात भर जलता रहूँगा।

Sunday, February 12, 2017: Hug Day

जिन्दगी की बाँसुरी को नव्य तान मिल गयी .
तुम मिले तो यूँ लगा कि चाँदनी सी खिल गयी .

काँपते हुए करों से जब तुम्हें प्रथम छुआ .
सिहरने लहर गईं ओ!यार जाने क्या हुआ.
निष्कलंक चाँद के चकोर नैन जब हुए .
तब लगा कि जिन्दगी है जिन्दगी नहीं जुआ .
तुम गले लगे तो लगा बिजलियाँ मचल गईं .
तुम मिले तो यूँ लगा कि चाँदनी सी खिल गयी .

प्रेम पीर की प्रतीत थी प्रत्येक पोर में.
मुक्त हृदय बह रहा था संग हर हिलोर में .
प्रस्फुटित हुए कमल हुए भ्रमर उतावले .
तेरे दिल की रोर सुनी अपने दिल के शोर में .
और प्यार की घिरी घटा बुझा अनल गयी .
तुम मिले तो यूँ लगा कि चाँदनी सी खिल गयी .

प्यार जब जगा प्रत्येक आवरण उलट गया .
डूब कर लगा कि जैसे आज मैं उबर गया .
समीकरण तुम्हारे संस्पर्श से सुलझ गये .
जिन्दगी की गीतिका का व्याकरण सँवर गया .
नेहताप से कठोर उरशिला पिघल गयी .
तुम मिले तो यूँ लगा कि चाँदनी सी खिल गयी .
Monday, February 13, 2017: Kiss Day

बड़ा अनूठा बंधन तितली बंधकर भी स्वछन्द रहे .
अनुबंधों से प्रतिबंधो से मुक्त प्यार की गंध बहे .
क्या करना यश-धन-वैभव का,बस इतना ही काफी है .
इन ओठों में प्यास और उन ओठों में मकरंद रहे .

Tuesday, February 14, 2017: Valentine Day

1.मत किसी को भी बताना ,
राज की यह बात .

वाटिका में क्या खिला पाटल .
हाय कैसी हो रहीं पागल .
नित-नवेली रँग-बिरंगी ,
तितलियों की जात .
मत किसी को भी बताना ,
राज की यह बात .

हाथ मँहदी पग महावर के .
नदी पहुँची द्वार सागर के .
अठखेलियाँ चलती रहीं ,
आज सारी रात .
मत किसी को भी बताना ,
राज की यह बात .

स्वप्न आया थी सुबह सोती .
सम्पुटित है सीप में मोती.
प्रिय तभी से हो रही हूँ ,
मैं प्रफुल्लित गात.
मत किसी को भी बताना ,
राज की यह बात .
२.
मिला मोबायल पर संदेश
लिखा था तुमने अपनापन
तुम्हारी बातों की खुशबू
भिगो सी गयी समूचा मन

तुम्हारी बातें शहद-शहद
हँसो तो खिलने लगें प्रसून
साथ तेरा है पुरवाई
जून की लपट लगे सावन

फेर मुहँ पहले जाना दूर
ठिठकना फिर पीछे मुड़ना
देखना पलक उठा चुपचाप
लगे रुक गया यहीं जीवन

वेणुधर्मी वे वाणी-शब्द
शब्द से अधिक मुखर है मौन
अकम्पित पाटल वर्णी अधर
किन्तु बतियाते नयनानन

धूप का टुकड़ा उजला रूप
साँस में चन्दन वन महके
रसीले बादल जैसा हृदय
सिन्धु सा हहराता यौवन
3.
सूरज की वेदी पर जिस दिन धरा चंद्र ने भाँवर डाली.
धरा सुहागन हुई अमा की रात कटी फैली उजियाली.
उस उजियाली में ओ प्रियतम,
मेरी आँखों के दर्पण में ,
उभरी थी तस्वीर तुम्हारी.
यूँ तो केवल तीन बरस का ही तो परिचय हुआ हमारा
पर लगता है रही पुरानी बहुत पुरानी अपनी यारी.

सात दिवस की विभीषिका के जल थल भू पर चिह्न शेष थे.
महाकाल ने अभी-अभी तो स्वयं समेटे प्रलय केश थे.
एक बार फिर से प्राची से,
धरती का सौभाग्य उगा तो,
नील लोम वाली भेड़ों की अपने तन पर शाल लपेटे.
शतरूपा बनकर थी प्रकटी मेरे सम्मुख छवी तुम्हारी.
यूँ तो केवल तीन बरस का ही तो परिचय हुआ हमारा
पर लगता है रही पुरानी बहुत पुरानी अपनी यारी.

जल सिमटा हिम-नद-सागर में सप्त वरन धरती मुस्कानी.
मैने बाँधी पाग केसरिया तुम ओढ़े थीं चूनर धानी.
हिमल शिलाओं से प्रतिमायें ,
सागर के तट पर तस्वीरें,
इक दूजे की हमने-तुमने ही तो सबसे प्रथम रची थी.
ये एलोरा और अजंता अभी हाल की कृतियाँ सारी.
यूँ तो केवल तीन बरस का ही तो परिचय हुआ हमारा
पर लगता है रही पुरानी बहुत पुरानी अपनी यारी.

पहले पहल धरा पर उतरी छः ऋतुओं की अनुपपम डोली.
दहके लहके बहके चहके दो तन दो मन तम यूँ बोली.
मन में पीर पपीहे वाली,
बौराये हम आम्रकुंज से,
नादित हों बादल सम भू पर आओ इठलाये मोरों से.
गायन वादन नृत्य कलायें जग पाया कर नकल हमारी.
यूँ तो केवल तीन बरस का ही तो परिचय हुआ हमारा
पर लगता है रही पुरानी बहुत पुरानी अपनी यारी.

संस्कार वे तत्व बन गये जिनसे नयी पीढ़ियाँ सींची.
धर्मसेतु है कर्मपंथ है हमने जो रे खायें खींची.
जिज्ञासा से समाधान तक तुम्हें याद अपनी यात्रायें.
पहिये और आग की खोजे रामायण और वेद ऋचायें.
उपजी थीं क्या नहींबताओ अपनी भाव भूमि से प्यारी.
यूँ तो केवल तीन बरस का ही तो परिचय हुआ हमारा
पर लगता है रही पुरानी बहुत पुरानी अपनी यारी.
4.
यक्षिणी हो या परी हो तुम।
सत्य या जादूगरी होत तुम।

सृष्टि -शिल्पी रच तुम्हें विस्मित हुआ,
कौन की कारीगरी हो तुम।

हो सहज इतनी कि अब मैं क्या कहूँ,
कृतयुगी अचरज भरी हो तुम।

बदली-बदली सी लगे दुनियाँ मुझे,
जानतीं बाजीगरी हो तुम।

मिष्ठ मिश्री कभी खट्टी इमलियाँ,
कभी मिर्ची चरपरी हो तुम।

मीन नैना पीन कुच बिम्बोष्ठी,
सुभग सुन्दर रसभरी हो तुम।

तीक्ष्ण प्रतिवादी भयंकर हो बड़ी,
तर्क की इक कर्तरी हो तुम।

बोल दो ना कब बनोगी पीतकर,
अब तलक तो अन्वरी हो तुम।

हाल दिल का एक पल में भाँपतीं,
डाल दृष्टी सरसरी हो तुम।

चाहता सुलझो उलझती ओर ही,
पेहेली उलझन भरी हो तुम।

मन से तन से मखमली ओ रूपसी,
पर जुबाँ की खरखरी हो तुम।

ताज तो मुर्दा है तुम जीवंत हो,
पूर्णतःसँगमरमरी हो तुम।

विश्व रौशन जब तलक तुम सामने,
चमचमाती मरकरी हो तुम।

मन मुलायम ओढ़तीं कुलिशावरण
नारियल में ज्यों गरी हो तुम।

फैंकता लंबी जो कोई सिरफिरा,
पल में कर देतीं घरी हो तुम।

छाछ को भी चूँसती हो फूँक कर,
दूध से लगता जरी हो तुम।

सद्गगुणों की हो सहेली सत्वरा,
बस व्यसन अवगुण अरी हो तुम।

खोज खोटें मैं तुम्हारी थक गया,
मानता बिल्कुल खरी हो तुम।

अल्प विचलन भी गवारा है नहीं,
नीतिपथ की अनुचरी हो तुम।

अंत से आगाज़ करने में कुशल,
अनवरत अंताक्षरी हो तुम।

मरु-ह्रदय भर सिन्धु तुमने कर दिया,
प्रेम की वह निर्झरी हो तुम।

सिर दिआ है ओखली में तो प्रिये,
मूसलों से क्यों डरी हो तुम।

मिलन कालिक फगुनई बौछार प्रिय,
विरह आँसू बन ढरी हो तुम।

केश घन की छाँह करके नेह से ,
देह को देती तरी हो तुम।

चौंकती तुम छिपकली को देखकर,
देख झींगुर थरथरी हो तुम।

वादा करके भी न आयीं तो लगा,
कोई नेता खद्दरी हो तुम।

बाँट लो गम हमको अपना मानकर,
टीस जो मन में धरी हो तुम।

काम की उद्दाम नद में तैरती,
यूँ लगे इक जलपरी हो तुम।

कभी झाड़ो ज्ञान के उपदेश तो,
कभी लगता सिरफिरी हो तुम।

गालपर मेरे तमाचा जब कसा,
तब लगा था बर्बरी हो तुम।

माँगता हूँ मधुकरी यह सोचकर,
नेह से पूरी भरी हो तुम।

चाहने वाले तुम्हारे हैं बहुत,
जाने क्यों हम पर मरी हो तुम।

कामना उपवन सुवासित कर रहीं,
एक पुष्पित वल्लरी हो तुम।

जब मिलीं चलती मिलीं चलती रहीं,
जिन्दगी यायावरी हो तुम।
5.
तेरह की हीर हुई,
चौदह का राँझ।
गुन-गुनियाँ भोर हुई,
रुन-झुनियाँ साँझ।
पनघट उपवन निकुंज,
सब हुए पुराने।
सुबह-सुबह निकल लिए,
ट्यूशन बहाने।1

अलसायी आँखों में,
तपती सी प्यास।
बुलबुल ने भंग किये,
गुल के उपवास।
ओठों पर थिरक रहे,
फिल्मों के गाने।
सुबह-सुबह निकल लिए,
ट्यूशन बहाने।2

बचपन के माथे पर,
यौवन के लेखे।
शीशे में घंटौं तक,
खुद को ही देखे।
चिलमन में चोर छिपे,
घर-घर में थाने।
सुबह-सुबह निकल लिए,
ट्यूशन बहाने।3

माशूका गलियों में ,
साँझ तलक बैटिंग।
सैटिंग की आस लिये,
कैफे में चैटिंग।
काजोल-करीना के,
फोटो सिरहाने।
सुबह-सुबह निकल लिए,
ट्यूशन बहाने।4

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