Menu
blogid : 14295 postid : 1310211

है असम्भव सी तिमिर की हार.है असम्भव ही तिमिर की हार

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
  • 105 Posts
  • 250 Comments

घिर उठा तम भूमितल पर
सूर्य सोया हार थककर
स्वर चुनौती के उठे कुछ
जल उठे सब दीप बनकर
लग रहा था मिट गया तम
नयन भू के हर्ष से नम
दीपतल में किन्तु वह चुपचाप
छिप गया ज्यों काटता अभिशाप
चुक गया सामर्थ्य का घृत
दीपकों के टूटते वृत
हाँफती बाती कहे बस ,
यही बारम्बार …………
है असम्भव सी तिमिर की हार
है असम्भव ही तिमिर की हार

रवि चला ले रश्मियों का जाल
तिमिर मीनों के लिए था काल
पूर्वीतट से लिए विश्वास
वह उछलकर फेंकता है जाल
पीठ करके अब समर से
भागता तम स्यात डर से
रूप छाया का लिए चुपचाप
घूमता जग में बिना पदचाप
झुक गया रवि द्वय प्रहर के बाद
बढ़ चला तम फिर लगाये घात
डूबता सूरज कहे बस,
यही बारम्बार ………….
है असम्भव सी तिमिर की हार .
है असम्भव ही तिमिर की हार

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply