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अरे!विश्व विनती का किंचित ध्यान धरो अर्घ्य दान दो नहीं नवोदित सूरज को

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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रिक्त चषक रहने दो मेरा अभी सुनो
चस्का पड़ जाए न मादक धारों का
अभी लोटने दो धरती की रेणू में
स्वप्न जगाओ नहीं नयन में तारों का
अभी कहाँ दृष्टव्य कहो अक्षत सुवास
जो करता है पृथक -पृथक चन्दन रज को
अरे!विश्व विनती का किंचित ध्यान धरो
अर्घ्य दान दो नहीं नवोदित सूरज को .१.

एकबार पर फैलाकर उड़ गया अगर
फिर न लौटकर सम्पाती सा आना है
अभी नीड़ से अस्फुट स्वर में गाने दो
कल सूरज चंदा का पता लगाना है
अभी कहाँ वह शक्ति भुजाओं में ,कर दे
भू-लुंठित चींटी से लेकर जो गज को
अरे!विश्व विनती का किंचित ध्यान धरो
अर्घ्य दान दो नहीं नवोदित सूरज को .२.

सदा सुपूजित सूरज अध्:पतित होते
कोटि -कोटि हतभाग्य जा चुके अस्ताचल
किसे समय है फिर जो उनकी सुधि लेवे
विश्व प्रणाम करेगा नव सूरज को कल
देव शीश पर चढकर है जो इठलाया
कल घूरे पर देखोगे उस पंकज को
अरे!विश्व विनती का किंचित ध्यान धरो
अर्घ्य दान दो नहीं नवोदित सूरज को ३.

प्रखर वहिन जो धधक रही उर वेदी में
छिड़क रहे क्यों पुन:पुन:ये शीतल जल
कर पाओ तो केवल यह उपकार करो
आलोचन समिधा दे कर दो सम्वृत बल
व्यंग्य करो मत कह सुन्दर सर्वांग पूर्ण
अष्टावक्री देह न भूले निज कज को
अरे!विश्व विनती का किंचित ध्यान धरो
अर्घ्य दान दो नहीं नवोदित सूरज को .४.

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