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हम समय के पहरुए हैं,जागरण करने चले हैं.

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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हम समय के पहरुए हैं.
जागरण करने चले हैं.
जो तिमिर के प्रतिनिधी हैं,
आँख में उनकी खले हैं.
ध्यान में रख चिर-पुरातन ,
विश्व की नित-नव्यता को .
फिर पुरानी नींव पर हम ,
गढ़ रहे नव-सभ्यता को .१.

मातृवत उर से लगाती .
संस्कृति रक्षक पिता सी.
अनगिनत युग-कल्प से यह ,
अमृता अपराजिता सी.
सामने शत-सभ्यताएं,
जा चुकी भवितव्यता को .
फिर पुरानी नींव पर हम ,
गढ़ रहे नव-सभ्यता को.२.

अश्वमेधी अश्व आगे ,
वाहिनी पीछे खडी है .
स्वेद-शोणित एक कर दें,
यह परीक्षा की घड़ी है .
श्रेष्ठ कर्मों से बढायें ,
राष्ट्र-भू की भव्यता को .
फिर पुरानी नींव पर हम ,
गढ़ रहे नव-सभ्यता को.३.

सिन्धु पर पाषाण तैरे ,
गिरि कनिष्ठा पर उठाया .
है असम्भव कुछ नहीं ,उन
पूर्वजों ने यह सिखाया .
खोजते हम फिर असम्भव ,
में छिपी सम्भाव्यता को .
फिर पुरानी नींव पर हम ,
गढ़ रहे नव-सभ्यता को.४.
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