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अरे!धनुर्धर लक्ष्य वेध तब ही तो होगा जब खिंची हुई इच्छा की प्रत्यंचा छोड़ोगे

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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अरे!धनुर्धर लक्ष्य वेध तब ही तो होगा
जब खिंची हुई इच्छा की प्रत्यंचा छोड़ोगे

तबतक जप-तप और याग से क्या होना है
राग-द्वेष के बादल जबतक नहीं फटेंगे
गंगा मैया कितने पापों को धोएगी
अगर दिलों के खाई-खन्दक नहीं पटेंगे
ये दर-दर पर शीश झुकाना बहुत हो गया
जो उसपार चले सो दौलत कब जोड़ोगे
अरे!धनुर्धर लक्ष्य वेध तब ही तो होगा
जब खिंची हुई इच्छा की प्रत्यंचा छोड़ोगे (1)

चकुला बोला माँ से ये तो बहुत बड़ा है
मैं हूँ छोटा सा, छोटा आकाश चाहिए
माँ बोली आकाश एक ही होता है रे
पंखों से उसको छूने की प्यास चाहिए
डिम्ब तोडकर तुम ही नहीं सभी जन्में है
बोलो द्विज कब भ्रम का भय का घट फोड़ोगे
अरे!धनुर्धर लक्ष्य वेध तब ही तो होगा
जब खिंची हुई इच्छा की प्रत्यंचा छोड़ोगे (2)

टूट-टूटकर बिखर चुके हैं नूपुर सारे
फिर भी तन्मय होकर नाच रही है नटिनी
मरु की चादर ओढ़ सो गयी बरसों पहले
लोगों का क्या है अब भी कहते हैं तटिनी
ये लोग एकदिन तोड़ जायेंगे सम्बन्धों
या उससे पहले तुम ही इनसे मुँह मोड़ोगे
अरे!धनुर्धर लक्ष्य वेध तब ही तो होगा
जब खिंची हुई इच्छा की प्रत्यंचा छोड़ोगे (3)

कस्तूरे !मुट्ठी में बंधती नहीं सुगन्धी
उसकी प्राप्ति नहीं केवल पहचान चाहिए
घट-घटवासी को घट-घट में देख सके जो
करुना पूरित दृग संवेदी प्राण चाहिए
समय तोड़ ही देता है सब तन के बंधन
तुम ये बोलो मन की गांठे कब खोलोगे
अरे!धनुर्धर लक्ष्य वेध तब ही तो होगा
जब खिंची हुई इच्छा की प्रत्यंचा छोड़ोगे (4)

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