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मेरा संसार तुम्हीं से है
मुझको बस प्यार तुम्हीं से है
है और बात उन्मुक्त गात होकर
तुमसे कह सका नहीं
पर बिना कहे रह सका नहीं
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ये अहंकार की प्रतिमा सा
जो कुलिश गात पर्वत कठोर
इसमें रहनी है शेष कहाँ
जीवन स्पंदन की हिलोर
पर इसके अन्तर में जल है
जो करता कल-कल छल-छल है
है और बात झरना बनकर
ये जल अबतक बह सका नहीं
मेरा संसार तुम्हीं से है
मुझको बस प्यार तुम्हीं से है
है और बात उन्मुक्त गात होकर
तुमसे कह सका नहीं
पर बिना कहे रह सका नहीं (1)
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काँटों की हरी शाल ओढ़े
ये चटख शोख रंग का गुलाब
श्री सामंतों सी ठसक लिए
आँखों में सत्ता का रुआब
पर इसके भीतर भी पराग
जो सतत गा रहा सुरभि राग
है और बात आगे बढकर
पर तितली के गह सका नहीं
मेरा संसार तुम्हीं से है
मुझको बस प्यार तुम्हीं से है
है और बात उन्मुक्त गात होकर
तुमसे कह सका नहीं
पर बिना कहे रह सका नहीं (2)
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ये पांचजन्य घन-गर्जन स्वर
करता अरिमन में भी भरता
डगमग –डगमग धरती डोले
जब समरांगण में पग धरता
पर उर में गूँज रही वेणू
राधा-जसुदा-गोकुल-धेनू
है और बात वह द्वारिकेश
वृन्दावन में रह सका नहीं
मेरा संसार तुम्हीं से है
मुझको बस प्यार तुम्हीं से है
है और बात उन्मुक्त गात होकर
तुमसे कह सका नहीं
पर बिना कहे रह सका नहीं (3)
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