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ढल गई है साँझ दिन का थका हलवाह सोना चाहता है

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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ढल गई है साँझ
दिन का थका हलवाह
सोना चाहता है

भूल उस अल्हड़ किरन को
कि जिसने
भोर में था
गुदगुदा उसको जगाया

और वह
श्यामल सलोनी छाँह
कसमसाती सी
कुँए के जगत वाली
कि जिसकी
ओढ़नी को शीश पर धर
तप्त दोपहरी की
उस तीखी लपट में भी
सकौतुक
वह तनिक सा मुस्कराया

अब
काली निशा में
उर्वर बीज सपनों के
कि जो
अँकुआ उठेंगे
कल
उषा अनुरागिनी का
स्पर्श पाकर
मौन और चुपचाप
बोना चाहता है

ढल गई है साँझ
दिन का थका हलवाह
सोना चाहता है …….

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