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सिन्धु होने के लिए आतुर ह्रदय है हर नदी का

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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सिन्धु जब तपता रहा ,
आकाश में तब घटा छायी।
और बदली ने बिखरकर ,
भूमि पर सब श्री लुटायी।
रज हुई रससिक्त कण-कण,
में जगी सौन्दर्यमयता।
ले धरा से चेतना,
वानस्पतिकता मुस्करायी।
केन्द्र टूटेगा अगर तो ,
परिधि बन आकार लेगा।
विश्व रे मेरा विसर्जन ,
भी सृजन को जन्म देगा। १

टूटना गिरि के ह्रदय का,
निर्झरों को जन्म देता।
निर्झरों का भूमि पर बिखराव,
नद का रूप लेता।
सिन्धु होने के लिए,
आतुर ह्रदय है हर नदी का।
बस युहीं जीवन सदा,
गतिमानता में अर्थ लेता।
तरल होगा सत्य तब,
शिव-सुन्दरम् का रूप लेगा।
विश्व रे मेरा विसर्जन ,
भी सृजन को जन्म देगा। २

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