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अभी उगा है सूर्य धरा पर

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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अभी उगा है सूर्य धरा पर,
अभी खिली है धूप।

किरन बहूटी के आगम की ,
आँगन में रुनझुन।
रणभेरी के सिर चढ़कर,
हँसती वंशी की धुन।
अभी बेड़ियाँ कटी पटे हैं,
 अंधे खाई कूप।
अभी उगा है सूर्य धरा पर,
अभी खिली है धूप।

धूप क्रोशिया लिये बुन रही,
केसरिया रूमाल।
जिजीविषा के आगे मस्तक,
झुका रहा है काल।
उदित चेतना फटक रही है,
इतिहासों  का सूप।
अभी उगा है सूर्य धरा पर,
अभी खिली है धूप।

अब न शीश से मिटे किसी के,
सपनों का आकाश।
राजतिलक के समय किसी को,
फिर न मिले वनवास। 
अभी चढ़ा उपवन परयौवन,
कलिकाओं पररूप।
अभी उगा है सूर्य धरा पर,
अभी खिली है धूप।

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