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प्यास तुम्हारी चिरसंगी सागरजेता

Achyutam keshvam
Achyutam keshvam
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तुम यथार्थ की नगरी के बाशिंदे हो।
पर मैं रहता हूँ सपनों के ग्राम में।

जो मेरा विश्वास तुम्हारी लाचारी।
मेरी एक कल्पना सौ सच पर भारी।
दुनियादारी तुम्हें मुबारक रमे रहो,
पर मैं तो रमता बस अपने राम में।
तुम यथार्थ की………………….(1)

हाँ तुमने ही खोजे हैं तट सागर के।
मैं तो साथ रहा हूँ घट के गागर के।
प्यास तुम्हारी चिरसंगी सागरजेता,
तुष्टि सहचरी मेरी आठौ याम में।
तुम यथार्थ की…………………..(2)

तुम जुटे रहे उलझे धागे सुलझाने में।
मैं मस्त नाचती तकली ताने-बाने में।
सुलझाते-सुलझाते तुम ही उलझ गये,
मैं नाँचू ओढ़ चुनरिया धरती धाम में।
तुम यथार्थ की……………………..(3)

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