Achyutam keshvam
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निमिष में फेर देगी साँझ
काली तूलिका
गेरूए आकाश पर
जैसे
भोर में छिन -पल
चीरती
गैरिक किरण
श्यामल- आँचल
यामिनी का
और हम
शिलावत भोगते
सूर्योदय-सूर्यास्त
छातियों पर आरियाँ सहते
श्वाँस की,प्रश्वाँस की
हर भोर
शुभाकांक्षी शंख
हर शाम
धन्यवादी बीन
स्वच्छ जल में भी तड़पती मीन
पूँछता
चटका हुआ
स्वप्न का दर्पन
कि
कब आजाद होंगे
भय के पीजड़े में
घुट रहा है दम।
…………………
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