Achyutam keshvam
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क्या मेरी सामर्थ्य माँ ,रचूँ गज़ल या गीत .
मैं तो तेरी बाँसुरी ,गुञ्जित तव संगीत .
हस्त आमलक वत उसे ,स्वर्ग और अपवर्ग .
राष्ट्र याग में जो करे ,प्राणों का उत्सर्ग .
जाति वर्ग मत पंथ के ,जो मिट जाएँ विभेद .
तो पल में मिट जायेगा ,माँ के हिय का खेद .
निज भाषा संस्कृति कला ,पर धरकर विश्वास .
जगद गुरु हो माँ पुनः , एसा करें प्रयास .
विश्व क्षितिज पर देश का ,दिन -दिन बढ़े प्रताप .
पर अवलंबन अनुकरण, त्याग सकें जो आप .
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